शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

कान्हा ! श्याम ! मुरारी !

जन्माष्टमी पर सब के लिए मंगलकामनाएं


कान्हा ! श्याम ! मुरारी !











कान्हा ! श्याम ! मुरारी !

-अरुण मिश्र


हे! मोहन, राधा।
बसहु चित्त, छवि जुगल सदा;
हरहु सकल बाधा।।


हे! गुपाल गिरिधारी।
बिगरी कौन बनावै तुम बिन;
राखो लाज हमारी।।


हे! नटवर नागर।
इक तुम्हरो भरोस हिय माँही;
तारो भव सागर।।


कान्हा! श्याम! मुरारी!
गोविंद! माधव! नंद के लाला!
टारो विपति हमारी।।


साँवले, सलोने श्याम!
सोलह कलाओं से पूर्ण; पूर्णकाम।
स्वीकारो कोटिशः प्रणाम।।


                *

(तीन पदों की कुछ छोटी-छोटी तुकांत रचनाएँ, 
पदवार  क्रमशः  तीन, पाँच एवं तीन के शब्द-विधान में। )
 
 

 

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