रविवार, 26 अप्रैल 2015

उदास शाम को जब ख़ुद से बात करता हूँ


उदास शाम को  जब  ख़ुद  से  बात करता हूँ 
-अरुण मिश्र



उदास शाम को  जब  ख़ुद  से  बात करता हूँ 
मैं   ज़हरे-ज़ीस्त   को  आबे-हयात करता हूँ

चिराग़े-फ़िक्र     सरे-शाम    जला    लेता  हूँ 
जिस  से  रोशन  तमाम  क़ायनात करता हूँ 

तुम्हारी  याद  का  इक  चाँद  खिला लेता हूँ 
अमाँ  की  रात को  भी   चाँद-रात  करता हूँ 

कोई तो नख़्ल  उगे  काश  मन के  सहरा में 
मैं  अपनी आँख को   दज़्ला-फ़रात करता हूँ 

'अरुन' ज़ुबाँ से सहल हूँ समझ में मुश्किल हूँ 
सुख़नवरी में  तो  ग़ालिब को  मात करता हूँ 
                                 *

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

आओ धरती को बचाएं...

पृथ्वी दिवस पर विशेष



आओ  धरती को  बचाएं...

-अरुण मिश्र 


        ऐसी  तहज़ीबो - तरक्की  से   भला  क्या  हासिल  ?
      कि,  जो  इंसान  ही  बन  जाये  ज़मीं का  क़ातिल | 
       तायरो - ज़ानवर   बच  पायेंगे,  न  शज़रो - बसर |
       अगले  सौ  साल  में   होगा  ज़मीं   पे    ये   मंज़र -

दिमाग़   जीते    भले,    रोयेगा,     हारेगा     दिल |
ऐसी  तहज़ीबो - तरक्की  से  भला  क्या  हासिल  ??

       फूल    बाग़ों   में     खिलें,    पेड़ों    पे   पखेरू   हों |
       सांस  तो  ले   सकें,  ताजा  हवा   हो,   खुशबू   हो | 
       नीर नदियों का हो निर्मल कि जिसको पी तो सकें |
       आओ  धरती को  बचाएं कि,  इस पे  जी तो  सकें ||

साफ़   झीलों   में   सुबह,   आफताब   मुँह    धोये |
ज़ुल्म   ऐसा    न  करो   धरती   पे,   धरती   रोये ||
                                          *