रविवार, 15 दिसंबर 2013

उसको छू कर गुज़र गये होते .......

उसको छू कर गुज़र गये होते .......

-अरुण मिश्र. 


हज़्रते-नूह    पर     गये    होते।
हर  ख़तर  से  उबर  गये  होते।।

उसको  छू कर  गुज़र  गये होते।
फूल  दामन  में  भर  गये  होते।।

आदतन   वो   सँवर  गये   होते।
कितने  ज़ल्वे  बिखर  गये  होते।।

शाख़े-गु़ल मुन्तजि़र थी मुद्दत से।
काश   हम  ही   उधर  गये  होते।।

जा  न मिलती  जो  तेरे  कूचे में।
जाने  किस जा,  किधर गये होते।।

बिन  तिरे  जीने  के  तसव्वुर से।
हम तो  जीते जी  मर  गये होते।।

होता ग़र  आग का न दर्या इश्क़।
सब  ‘अरुन’  पार  कर गये होते।।
                       *

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