सोमवार, 29 जुलाई 2013

आभार



आभार

'रश्मि-रेख' में पहली पोस्ट  'रश्मि-रेख-आमंत्रण', २३ जुलाई, २०१०, की है 
इस लिहाज से जुलाई, २०१३ में इसके तीन वर्ष पूरे हो गए 

मेरे लिए यह संतोष की बात है कि, ब्लॉगर के स्टैट्स के अनुसार इस अवधि 
में आज की तिथि तक १०३०८  पेज व्यूज  हुए हैं जो, औसतन १० प्रतिदिन है 
इस अवधि में १७ समर्थक भी मिले हैं, और ४३७ लोगों ने प्रोफाइल में रूचि 
ली है 

अपने सहृदय शुभचिंतकों के इस सतत स्नेह से मैं अभिभूत हूँ मुझे इस 
बात की संतुष्टि है कि, आप सब तक पहुँच कर मेरी रचनाएँ सार्थक हुईं 
इनकी स्वीकार्यता के प्रति भी किञ्चित आश्वस्त  हो सका हूँ 

अपनी ब्लॉग-यात्रा के इस पड़ाव पर, लगातार साथ दे कर, मेरा 
उत्साह वर्धन करते रहने के लिए, मैं आप सब का हृदय से कृतज्ञ हूँ 

मैं विशेष कर अपने उन शुभेच्छुओं  का आभारी हूँ जिन्होंने पहले वर्ष में, 
समर्थन, मार्गदर्शन एवं टिप्पणियां दे कर कर मुझे उपकृत करने की कृपा की

आप सभी, जो मेरे ब्लॉग तक पहुंचे, मेरे दिल के बहुत करीब हैं अनुभूतियों के 
इस लेन-देन में धन्यवाद बहुत छोटा शब्द है। अस्तु , मैं पुनः-पुनः सभी को 
अपनी विनम्र कृतज्ञता अर्पित करता हूँ 

बहुत-बहुत आभार 

-अरुण मिश्र.

 'शाकुन्तलम',
  ४ /११३, विजयन्त खण्ड, गोमती नगर,
  लखनऊ -२२६०१०. 

  arunk.1411@gmail.com

  मोबाइल : ०९९३५२३२७२८    
                         

शनिवार, 20 जुलाई 2013

रहने दो म्यां हियां पर दीनो-धरम की बातें.....


रहने दो म्यां हियां पर दीनो-धरम की बातें...

-अरुण मिश्र.

रहने दो म्यां  हियां पर,  दीनो-धरम की  बातें।    
दैरो-हरम  में  जँचतीं,   दैरो-हरम   की   बातें॥

उसके  ख़याल को   हैं,  दिल को हमारे  यकसां।  

ज़ोरो-सितम  की  बातें,  मेह्रो-करम  की  बातें॥

जो कुछ है सब उसी का, यां कुछ नहीं किसी का।  

इसके  अलावा जो भी,  सब  हैं  भरम  की  बातें॥

टुक  मेरे  पास  बैठो, तुम भी  'अरुन' से  सीखो।  

हसरत की, दर्दो-ग़म की,दिल के मरम की बातें॥
                                           *

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

मेरा मन केदारनाथ में .....


The hellish rains have turned Kedarnath into a ghost town. Though the outer structure of the temple seems intact, there are bodies piled up outside its gate.  Kedarnath shrine, one of the holiest of Hindu temples dedicated to Lord Shiva, and other buildings are seen damaged. (PTI)
                     मलबों  में  सिसकी  लेती  हैं जाने  कितनी  करुण-कथायें ...










मेरा मन केदारनाथ में .....                

-अरुण मिश्र.

यूँ   तो  मैं  घर  में   बैठा हूँ,
मेरा   मन   केदारनाथ   में।।

जहाँ प्रकृति ताण्डव-लीला-रत;
पागल   जहाँ   हुये   हैं   बादल।
घूम  रहा  है   उस   प्रान्तर  में,
पर्वत - पर्वत,  जंगल - जंगल।।

मेरा  मन   उनसे  जुड़ता  है,
बचा न जिनके कोई साथ में।।

किसका  साथ  कहाँ  पर छूटा?
अन्तहीन   बह  रहीं   व्यथायें।
मलबों  में   सिसकी  लेती   हैं,
जाने  कितनी   करुण-कथायें।।

संग  तुम्हारे, सब सनाथ थे;
कैसे, कुछ  बदले अनाथ में??

जो   विनशे   विनाश-लीला  में,
उनके प्रति यह हृदय, द्रवित है।
किन्तु, प्रलय से जो बच निकले,
उन्हें  देख,   मन   रोमांचित  है।।

कौन  जियेगा,  कौन  मरेगा?
है यह विधि के चपल हाथ में।।

थोड़े    आँसू     की     श्रद्धाँजलि, 
   उन्हें,   नहीं   हैं  शेष  आज  जो।
   जो   विपदा   में   बचे   सुरक्षित,
   पथ  उनका   भी,   मंगलमय हो।।

महाप्रलय के बाद, सृष्टि फिर
नूतन  उभरे,  नव-प्रभात  में।।
*