शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

तुम परीशां हो कि आखि़र धातु का मैं किस ढला हूँ ........

ग़ज़ल 

तुम परीशां हो कि आखि़र धातु का मैं किस ढला हूँ ........

-अरुण मिश्र. 


तुम परीशां हो कि आखि़र धातु का मैं किस ढला हूँ ।
यातनाओं के  शिविर में  साँस   ले-ले  कर  पला हूँ ।।

हाँ   यही कारण है,  सह जाता हूँ   हर  तकलीफ मैं।
हॅसते-हॅसते इस तरह, जैसे  हिमालय की शिला हूँ ।।

आज  है  साहित्य  में   कुंठा,   निराशा   पर   बहस।
मैं  अभी  तक  नाज़नीं  की  कल्पना में  मुब्तिला हूँ ।।

सुनते  हैं   इस  दौर  में,  इन्सान  है  गुम   हो  गया।
भाई   मेरे  मुझको  देखो,  मैं  पुराना  सिलसिला  हूँ ।।

मेरे  संग  आये  न  कोई,   मुझको  है   परवा’  नहीं।
मेरी  है  बुनियाद  माज़ी,  मैं  स्वयं  ही  क़ाफि़ला हूँ ।।
                                          *



शनिवार, 24 नवंबर 2012

हम तो यां आये हैं अश्क़ों का उतर के दरिया......

ग़ज़ल 

हम तो यां आये हैं अश्क़ों का उतर के दरिया......

-अरुण मिश्र.



हम तो यां आये हैं,  अश्क़ों का, उतर के दरिया।
हमसे क्या माँगेगा,  बारिश में उभर के दरिया??


जितनी  ही  दूरी,  समन्दर  से  है,  घटती  जाये।
उतना ही, और भी, थम-थम के है, सरके दरिया।।


है  जिन्हें  जाना,  उन्हें  फि़क्र  क्यूँ  तुम्हारी  हो?
घाट  का  हाल,  कब  पूछे  है,  ठहर  के  दरिया??


क्या कहूँ,  ऐसी मुहब्बत को,  और कि़स्मत को?
है   उनका   हर्फ़े - वफ़ा,  और   है   वर्के़ - दरिया।।


जो  बदज़ुबान  है,  औ’  बदगु़मान भी है  ‘अरुन’।
नेकि़याँ   उससे  भी   करके,  करो  ग़र्के - दरिया।।
                                           *

रविवार, 18 नवंबर 2012

मेरी ग़ज़ल को तनहा नहीं गुनगुनाइये ......

ग़ज़ल 

मेरी ग़ज़ल को तन्हा नहीं गुनगुनाइये ......

-अरुण मिश्र . 


मेरी   ग़ज़ल   को    तन्हा  नहीं    गुनगुनाइये।
खुलिये  भी  ज़रा,  सुर  से  मेरे  सुर मिलाइये।।


अब  इतना  भी  नादान  नहीं, ये भी न समझूँ।
ग़ुंचा,  लबो  -रुख़सार   पे  क्यूँ  कर  फिराइये।।


खि़रमन हैं,  खेतियां हैं,  नशेमन हैं,  चमन हैं।
जल्वे  के    इन्तज़ार  में,   बिजली   गिराइये।।


सैय्याद  कौन,  कैसा  क़फ़स, तीलियाँ  कैसी?
बुलबुल  को   है  आराम  बहुत,  आप  जाइये।।


होती  न  पस्तियां  मिरी,  उसकी  बुलन्दियां।
तो   कौन   पूछता   उसे,   यह   तो    बताइये??


हर शै  में  नुमायां भी  है,  परदे  में  भी  निहां।
आँखों  पे,  भरम  का  है,  जो  परदा,  हटाइये।।


वो मिस्ले-मुश्क़ हो, या ‘अरुन’ इश्क़ की तरह।
तब तक  तलाशिये उसे,  जब  तक  न  पाइये।।
                                         *

सोमवार, 12 नवंबर 2012

श्री लक्ष्मी-गणेश जी की आरती


 शुभ दीपावली
 

                  * आरति श्री लक्ष्मी-गणेश की *

गत वर्ष दीपावली पर क्रमशः 27 एवं 29 अक्तूबर, 2011 की पोस्ट में  श्री लक्ष्मी -गणेश जी की यह संयुक्त आरती प्रस्तुत की गई थी। मेरे संगीतकार मित्र श्री केवल कुमार ने उस आरती को , इस दीपावली पर संगीतबद्ध  किया है जो, सभी भक्त जनों को दीपावली-पूजन हेतु सस्नेह भेंट की जा रही है। आरती को स्वर, सुश्री प्राची चंद्रा एवं सखियों ने दिया है। एतदर्थ, मैं इन सबका आभारी हूँ। 
माँ लक्ष्मी एवं भगवान गणेश की आप सब पर अशेष कृपा बरसे।
दीपावली की असंख्य शुभकामनायें। -अरुण मिश्र .  




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शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

तुम्हारा काँधा हमें आज फिर रुलावेगा.......

ग़ज़ल 

तुम्हारा काँधा हमें आज फिर रुलावेगा.......

-अरुण मिश्र.

तुम्हारा  काँधा   हमें,  आज  फिर   रुलावेगा ।
हाल   पूछोगे   तो ,   आजार   याद   आवेगा ।।

न  वज्हे-तर्के-तअल्लुक़,  बयां करो  सब  से ।  
कि इससे  मुझको,  तेरा प्यार,  याद आवेगा ।।

ये क़फ़स सोने का, मैंने है,  खुद पसंद किया ।
मुझे  पता था,  वो ज़ालिम,  बहुत  सतावेगा ।।

दिल मेरा चीर के,  ख़ुद देखेगा  अपनी सूरत ।
मेरे  कहे  से  भला,   क्यूँ  वो   मान  जावेगा ।।

हस्ती-ए-हुस्न   तो,   यूँ   ही  हुबाब  जैसी  है ।
ख़ूब  पर  दावा  है,   हस्ती   मेरी   मिटावेगा ।।

'अरुन' सुलावे; पिला चाँद, चाँदनी की शराब ।
अब  हमें   भोर   में,    ख़ुर्शीद   ही    उठावेगा ।। 
                                       *