शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

बीसियों हिंदी-दिवस आते रहे जाते रहे.........

ग़ज़ल 

*हिंदी दिवस पर विशेष *
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बीसियों हिंदी-दिवस आते रहे जाते रहे......... 

-अरुण मिश्र 

इस  तरह  हम  इश्क़  दोनों  ही  से  फरमाते  रहे ।
एक   की   खाते   रहे  और   दूजे   की   गाते  रहे ।।

सिर्फ़  दो सौ  साल में,  नस  कौन सी जाने  दबी ।
बाँध  टाई  ख़ुश  हुए,  गिट-पिट  पे  इतराते  रहे ।।

इससे बढ़ कर और क्या ज़ेह्नी ग़ुलामी का  सबूत ।
हिंदी को,  हिंदी में  लिखने में  भी,  शरमाते  रहे ।।

हर तरक्क़ी का सबब है,  अपनी भाषा का उरुज ।
मंत्र  से  'हरिचंद'  के,  हम  मन को बहलाते  रहे ।।

बाद  आज़ादी  'अरुन ',  हिंदी  वहीं  की   है  वहीं ।
बीसियों    हिंदी-दिवस,   आते   रहे,   जाते   रहे ।।
                                             *  


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