रविवार, 29 अप्रैल 2012

एहसासे-बुलंदी से तो नाहक़ घिरे हैं लोग........

ग़ज़ल

-अरुण मिश्र.

एहसासे-बुलंदी  से  तो  नाहक़  घिरे हैं  लोग। 
इन्सानियत की हद से भी नीचे गिरे हैं लोग॥


लड़ते   जो   अक़ीदों  पे,  कोई  और  बात थी। 
लड़ते हैं ज़ुबानों  पे, अज़ब  सिरफिरे  हैं लोग॥
  
उलझे हों कि सुलझे हों, पै उम्मीद  इन्हीं  से। 
अल्लाह की पहेली के , खुलते सिरे   हैं  लोग॥
  
दैरो - हरम   में   ढूढ़ते,  शम्में   जला - जला। 
वो  नूर , बख़ुद  जिसमें  सरो-पा घिरे हैं लोग॥
  
सब  वक़्त की  है बात, ये शाहो-गदा के  खेल। 
जो आज तेरे साथ  'अरुन'  सब  मिरे हैं लोग॥
                                  *

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