मंगलवार, 24 मई 2011

ज्येष्ठ के प्रथम बड़ा मंगल पर विशेष

देह कुंदन( भाल चन्दन( केसरी नंदन प्रभो ---

































है आसरा हनुमान जी---



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जैसे दुख  श्री जानकी जी का  हरा  हनुमान जी।
दुख   हमारे  भी  हरो]  है  आसरा  हनुमान जी।।

देह   कुंदन]  भाल   चंदन]  केसरी  नंदन  प्रभो।
ध्यान इस छवि का सदा हमने धरा हनुमान जी।।

लॉघ  सागर]  ले  उड़े]  संजीवनी  परबत सहज।
क्रोध]  कौतुक में  दिया लंका जरा  हनुमान जी।।

मुद्रिका दी]  वन  उजारा  और  अक्षय को हना।
शक्ति का  आभास पा]  रावन डरा  हनुमान जी।।

राम के तुम काम आये] काम क्या तुमको कठिन। 
कौन   संकट]  ना   तेरे   टारे  टरा  हनुमान जी।।

चरणकमलों में तिरे निसिदिन ^अरुण* का मन रमे।
हो  हृदय  में  भक्ति का  सागर भरा   हनुमान जी।। 





शुक्रवार, 20 मई 2011

शायरी मेरी जु़बां...


ग़ज़ल 

- अरुण मिश्र 

हाथ   कंगन   को  ‘अरुन’,  दरकार  है   कब आरसी।
शायरी   मेरी   जु़बां ,  क्या  हिन्दी ,   उर्दू  ,   फ़ारसी।।

भोर   की   किरनें   तबस्सुम-ज़ेरे-लब   सी   फूटतीं।
बोलियां  चिड़ियों   की,  दोशीज़ाओं  के  गुफ़्तार  सी।।

मीत  के  बिन  ज़िन्दगी,  इक  बोझ है  सबके लिये।
कुछ  को  लगती  है  ग़रां, मुझको  लगे  है  भार  सी।।

अश्व   बोलो ,  अस्प   बोलो ,   उष्ट्   या  उश्तर  कहो।
हो  मिलन  की  चाह  पर  गंगो-जमुन  की  धार  सी।।

प्यार  सी   शै   है   कहॉ ,  मोहताज़  भाषा  के  लिये।
चोट  भी   इसकी   है , फूलों  की  छड़ी  की  मार  सी।।

मुखकमल हो माहरुख़ या चन्द्रमुख, मतलब है एक।
बान  नयनों  के  अगर  हैं ,  तो   नज़र  तलवार  सी।।

भाल  पे   बेंदी  सजी  हो , माल  उर  पर   पुरज़माल।
नूपुरों    में    भी    सदा  ,  पाजे़ब    के    झंकार   सी।।

क़ैद  तो   फिर   क़ैद   है ,  तस्बीह   हो , ज़ुन्नार  हो।
शैख़   भी   पाबन्दियां ,  आइद   करे ,  अग़यार   सी।।

बुलबुलों  की   चहक   मीठी ,  कोयलों की   कूक सी।
उपवनों  से  भी  महक , आती  तो  है , गुलज़ार  सी।।

मैं श्रृगालों को  शिगाल कह दूँ  जो ख़ुश हो जाव तुम।
इससे   क्या   हो   जायेगी ,  हूऑ-हुऑ   हुंकार   सी।।

संस्कृत   के    साहिलों   में ,  फ़ारसी ,  बहती   नदी।
नाव   हिन्दी   की  ‘अरुन’ ,  उर्दू   हुई   पतवार   सी।।
                                    *

रविवार, 8 मई 2011

मातृ दिवस (मदर्स डे) पर विशेष...


धन्यवाद माँ !!!
-अरुण मिश्र 


'राम्या', अपनी मम्मा की  गोदी में चढ़ कर  डोल रही है |
चूम-चाट कर, गाल काट कर, हैप्पी मदर्स डे बोल रही है || 


माँ की आँखों से मैं दुनिया देखूंगी 


मातृ दिवस (मदर्स डे) पर विशेष...

   
 -अरुण मिश्र 































































टिप्पणी :   काव्य संग्रह 'अंजलि भर भाव के प्रसून' से साभार|