रविवार, 27 फ़रवरी 2011

कुछ रस सा चुला देतीं वो ऑखें इन ऑखों में...


वो ऑखें इन ऑखों में कुछ जादू सा करती हैं.                          : ग़ज़ल :



-अरुण मिश्र.



वे  ऑखें,  इन  ऑखों को, अक्सर  हैं  रुला देतीं।
इक आन में  ज़ां लेतीं,  इक छिन में जिला देतीं।।


वो ऑखें,  इन ऑखों को, उल्फ़त का सिला देतीं। 
मिलती हैं जो आपस में,दिल,दिल से मिला देतीं।।

कुछ रस सा चुला देतीं, वो  ऑखें,  इन ऑखों में।
साक़ी की तरह,  मन में  फिर मिसरी घुला देतीं।। 
 
वे नज़रें  मुझ पे फिरतीं, जब भोर के किरन सी।
मन के चमन में  सौ-सौ,  गुन्चों को  खिला देतीं।।
  
वो  ऑखें, इन  ऑखों में, कुछ जादू सा करती हैं।
ऑखें   खुली  रह  जातीं ,  पर  होश   सुला  देतीं।। 
 
उन  ऑखों के सहारे , पहुँचो  तो  सिर्फ़ उन तक।
रहे-इश्क़  के  सिवा  वे ,  हर   राह   भुला   देतीं।। 
 
उन ऑखों का‘अरुन’ है, एहसान इन ऑखों पर।
सपनों  के  हिंडोले  में , तन-मन को  झुला देतीं।।
                                 *    

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