सोमवार, 18 मार्च 2024

विश्वेश्वर दर्शन कर, चल मन तुम काशी.../ महाराजा स्वाति तिरुनाल कृति / स्वर : राहुल वेल्लाल

 https://youtu.be/mHy8k3LJPFg  

 

विश्वेश्वर दर्शन कर, चल मन तुम काशी।।
विश्वेश्वर दर्शन जब कीन्हो बहु प्रेम सहित,
काटे करुणा-निधान जनम-मरण फांसी।। 
बहती जिनकी पुरी मो, गंगा पय कॆ समान
वा कॆ तट घाट-घाट भर रहे संन्यासी।।
भस्म अंग, भुज त्रिशूल, उर में लसे नाग-माल 
गिरिजा अर्धांग धरे त्रिभुवन जिन दासी।।
पद्मनाभ, कमलनयन, त्रिनयन, शंभू, महेश
भज ले ये दो स्वरूप रहले अविनाशी।।
अर्थ 
हे मन ! भगवान विश्वेश्वर के दर्शन के लिए काशी की तीर्थयात्रा अवश्य करें।
यदि आप उनसे प्रेमपूर्वक प्रार्थना करते हैं, तो वह, दयालु व्यक्ति, निश्चित रूप 
से आपके लिए जन्म और मृत्यु के चक्र को काट देंगे।
गंगा नदी शुद्ध दूध की तरह शहर से होकर बहती है। 
नदी के तट पर ऋषियों का एक समूह निवास करता है।
भगवान अपने स्वरूप पर पवित्र राख का लेप करते हैं, 
अपने हाथों में त्रिशूल रखते हैं। उनके गले में एक सर्प सुशोभित है। 
वह अपना रूप पर्वतों की पुत्री गिरिजा के साथ साझा करते हैं। 
तीनों लोकों के सभी लोग उनके चरणों में हैं।
हे मन ! कमल-नेत्र भगवान पद्मनाभ और तीन नेत्र महेश्वर की पूजा करें 
और अमर रहें।

शनिवार, 16 मार्च 2024

मेरो खोई गयो बाजूबन्द रसिया होरी में.../ होरी रसिया / कीर्तनकार : रसेश शाह

 https://youtu.be/A5hvnneGcVY  

मेरो खोय गयो बाजूबंद,
रसिया होरी में,
होरी में, होरी में,
होरी में, होरी में,
मेरो खोय गयो बाजूबंद,
रसिया होली में ।

बाजूबंद मेरे बड़ो रे मोल को,
तो पे बनवाऊँ पुरे तोल को,
सुनो नन्द के फ़रजंद,
रसिया होरी में,
मेरो खोय गयो बाजूबंद,
रसिया होली में।

सास लड़ेगी मेरी ननद लड़ेगी,
खसम की सिर पे मार पड़ेगी,
हे जाय सब रस भंग,
रसिया होरी में,
मेरो खोय गयो बाजूबंद,
रसिया होली में ।

उधम लाला तेने बहुत मचायो,
लाज शरम जाने कहाँ धरी आयो,
मैं तो होय गई तोसे तंग,
रसिया होरी में,
मेरो खोय गयो बाजूबंद,
रसिया होली में।

बुधवार, 13 मार्च 2024

एक रोज़ हमारी भी दाल गलेगी.../ गीत : राजेन्द्र कृष्ण / गायन: किशोर कुमार

 https://youtu.be/Ibho18yPqYs


गीत : एक रोज़ हमारी भी दाल गलेगी...
फिल्म : बन्दी, (१९५७)
गायक : किशोर कुमार 
गीतकार : राजेन्द्र कृष्ण 
संगीतकार : हेमन्त कुमार 

धत तेरे की
फूंक फूंक कर चूल्हा
अँखियाँ का भयो सत्यानाश
हल्दी देवी बहू है अपनी
श्रीमती मिर्ची अपनी सास
हाँ बोल मेरे दुखिया मन कब तक
ये चूल्हा ये चौका
ये झाड़ू ये बर्तन
ये आटा बटाटा  
ये गड़बड़ गुलाटा 
और ये और वो और
धत तेरे की
पर सब दिन न होत 
एक सामान पंछी
काहे होत उदास
एक रोज़ हमारी भी दाल गलेगी
एक रोज़ हमारी भी दाल गलेगी
बैरी दुनिया जो देखेगी, खूब जलेगी
हाँ बैरी दुनिया जो
देखेगी खूब जलेगी
एक रोज़ हमारी भी दाल गलेगी
एक रोज़ हमारी भी दाल गलेगी

हो हो भैया हमारा है
एम. ए., बी. ए.  पास हाँ हाँ
हाँ हाँ भैया
हमारा है एम. ए., बी. ए. पास
भला कब तक हम
खाते रहेंगे ये घास
भला कब तक हम
खाते रहेंगे ये घास
सूखी सूखी घास
छी छी सड़ी सड़ी घास
धत तेरा सत्यानाश
सत्यानाश सत्यानाश

रूखी सूखी रोटी और
निम्बू का अचार
हाय हाय जाने कब
छोडेगा पीछा हमार
हाँ हाँ रुखी सूखी
रोटी और निम्बू का अचार
हाय हाय जाने कब
छोड़ेगा पीछा हमार
दिन होंगे ग़रीबी
के जिस दिन खल्लास
गरम गरम हाँ हाँ
गरम गरम कचौरी
पूरी खूब तलेगी
गरम गरम कचौरी
पूरी खूब तलेगी
बैरी दुनिया जो
देखेगी खूब जलेगी
बैरी दुनिया जो
देखेगी हाय हाय हाय
बैरी दुनिया जो
देखेगी हाय हाय
एक रोज़ हमारी भी दाल गलेगी
एक रोज़ हमारी भी दाल गलेगी

होगा एक दिन हमारे
भी पास बेयरा 
हाँ हाँ हा हा हा
हो हो हो हे हे हे
होगा एक दिन हमारे
भी पास बेयरा 
देगा दरवाज़े पर
गोरखा पहरा
देगा दरवाज़े पर
गोरखा पहरा, हे  हे 
मैं बन कर साहब
गिटपिट इंग्लिश बोलूँ रे
मैं बन कर साहब
गिटपिट इंग्लिश बोलूँ रे
ये चौका बर्तन छोड़
के होटल खोलूं रे
ये चौका बर्तन छोड़
के होटल खोलूं रे
इंग्लिश बोलूँ रे होटल खोलूं रे
गिटपिट बोलूँ रे होटल खोलूं रे
निकले मेरा जुलुस बैंड बाजे के साथ
रोज़ मेरी सलामी को तोप चलेगी
रोज़ मेरी सलामी को तोप चलेगी
बाबम बम बबबम
बम बबबबब बबम
बैरी दुनिया जो देखेगी खूब जलेगी
हाँ बैरी दुनिया जो
देखेगी खूब जलेगी
एक रोज़ हमारी भी दाल गलेगी
एक रोज़ हमारी भी दाल गलेगी
अरे दाल गलेगी
अरे दाल गलेगी अरे दाल हे 
अरे गली रे दाल हे
धिनका चाचड़
धिनका चाचड़
धिनका चाचड़
धिनका चाचड़ हाय

मंगलवार, 12 मार्च 2024

ज़िस्म ये रूह है, मिटटी है, ख़ला है, क्या है.../ ग़ज़ल / अरुण मिश्र / संगीत एवं स्वर : केवल कुमार

 https://youtu.be/LezXhC6AMKs 


ज़िस्म ये रूह है, मिटटी है, ख़ला है, क्या है ?
रूह है,  आग है,  पानी  है,  हवा  है,  क्या है ?

आँखें इसरार करें, लब पे  मुसल्सल इनक़ार 
कोई आदत है,  जिद  है,  के अदा है, क्या है?

कभी डसती, कभी लहराती, कभी छा जाती
कोई नागिन है, ज़ुल्फ़ है, कि घटा है, क्या है?

साँस  की  बंसरी  को  रोज़  नए  सुर  देता 
कोई फ़नकार है, शायर है, ख़ुदा है, क्या है ?

हुस्न को इश्क़ के रखते हो, मुक़ाबिल जो 'अरुन'
है  ये  ख़ुद्दारी,  ज़ुनूं  है,  कि  अना  है,  क्या  है?

सोमवार, 11 मार्च 2024

ऐसी भई अनहोनी सखी.../ ब्रज भाषा / रचना एवं काव्य पाठ : माया गोविंद

 https://youtu.be/hzNJNGdwHXM  

ऐसी भई अनहोनी सखी, अपनी छवि ना पहिचानत राधा। 
रोवैं जसोदा कि टोना भयो, कान्ह आपन नाम बतावत 'राधा'। 
घूंघट में उत स्याम ठड़े, इत बेसुध बंसी बजावत राधा। 
स्याम ही स्याम पुकारत स्याम, औ राधा ही राधा पुकारत राधा।। 

माँग भर , बिंदिया लगाई जब राधिका ने, लागे जैसे भोर वाला सूरज है झोरी में। 
कजरा लगावे तो या लागे के समुन्दर मा, मछरी फँसाय लई मछुवन डोरी में। 
गोरे-गोरे मुखड़े पे, घुंघटा सुनहरा यूँ , जैसे चाँद रखे कोई सोने की कटोरी में। 
नाक मा नथनिया वा धीरे-धीरे डारे ऐसे, जैसे कोई मालदार ताला दे तिजोरी में।।


रविवार, 10 मार्च 2024

नैनन में पिचकारी दई.../ होली रसिया / रचना : शालिग्राम जी / प्रस्तुति : परम पूज्य आचार्य श्री मृदुल कृष्ण जी

 https://youtu.be/hl9lDAEGdSI  

नैननि में पिचकारी दई मोहि गारी दई होरी खेली न जाय ।।

क्यों रे लंगर लंगराई मोते कीनी, केसर कीच कपोलन दीनी।। लिये गुलाल ठाड़ो ठाड़ो मुसकाय ।। होरी खेली न जाय ।।

नेक न कान करत काऊ की, आंख बचावै बलदाऊ की। पनघट सों घर लो बतराय। होरी खेली न जाय ।।

औचक कुचन कुमकुमा मारै, रंग सुरंग सीस पे ढारे। यह ऊधम सुन सास रिसाय। होरी खेली न जाय ।।

होरी के दिनन मोसों दूनो-दूनो अटके,
शालिग्राम कौन याहे बरजै।
अंग चुपट हंसि हा हा खाय।।
होरी खेली न जाय ।।

शुक्रवार, 8 मार्च 2024

चंद्रमुखी सन गौरी हमर छथि.../ महाकवि विद्यापति / मैथिल शिव-पार्वती विवाह गीत / स्वर : डॉ. रंजना झा

https://youtu.be/JD9gsauGP4Y  

चंद्रमुखी सन गौरी हमर छथि...

गे माई, 
चंद्रमुखी सन गौरी हमर छथि, सुरुज सन करितों जमाई।
गे माई, 
नारद के हम की रे बिगड़लों, जिन बूढ़ आनल जमाई। 
गे माई, 
एहेन सुनर धिया तिनको केहेन पिया नारद आनल उठाई।
गे माई, 
परिछन चलली माई मनाईंन, वर देखि खसलि झमाई। 
गे माई,
हम नै बियाहब इहो तपसि वर, मोरी धिया रहती कुमारि। 
गे माई, 
कहथिन गौरी सुनु हे सदाशिव, एक बेर रूप देखाऊ। 
गे माई,
देखि जुड़ाइत माई मनाईंन, देखत नगर समाज।
गे माई, 
भनइ विद्यापति सुनु हे मनाईंन, इहो थिका त्रिभुवन नाथ।
गे माई,  
करम लिखल छल इहो तपसि वर, लिखल मेटल नहि जाय।