सोमवार, 25 मार्च 2024

होली खेल मना रे फागुन के दिन चार रे !.../ मीरा बाई / गायन : मेघा मिश्रा एवं अन्य

 https://youtu.be/DMgshSuFGvQ 

होली खेल मना रे फागुन के दिन चार रे

बिन करताल पखावज बाजै अणहदकी झणकार रे।
बिन सुर राग छतीसूं गावै रोम रोम रणकार रे॥

सील संतोखकी केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार रे।
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे॥

घटके सब पट खोल दिये हैं लोकलाज सब डार रे।
मीराके प्रभु गिरधर नागर चरणकंवल बलिहार रे॥

शुक्रवार, 22 मार्च 2024

तुम निश्चिन्त रहना.../ किशन सरोज

 https://youtu.be/2jKYI08Q_mk

किशन सरोज जैसे गीतकार हिंदी की दुनिया में कभी- कभी जन्म लेते हैं। 
वे रागात्मक भाव के कवि थे और उनकी अधिकांश रचनाएं राग भाव के 
प्रासंगिक स्थितियों पर आधारित हैं। 19 जनवरी 1939 को उत्तर प्रदेश के 
बरेली के बल्लिया ग्राम में जन्मे किशन सरोज ने 350 से अधिक प्रेमगीत 
लिखे। उन्होंने लम्बी बीमारी के पश्चात ८ 
जनवरी, २०१९ को अंतिम सांस ली। 

कर दिए लो आज गंगा में प्रवाहित
सब तुम्हारे पत्र, सारे चित्र, तुम निश्चिन्त रहना।।

धुन्ध डूबी घाटियों के इन्द्रधनु तुम,
छू गए नत  भाल पर्वत हो गया मन। 
बून्द भर जल बन गया पूरा समन्दर,
पा तुम्हारा दुख तथागत हो गया मन। 
अश्रु जन्मा गीत कमलों से सुवासित,
यह नदी होगी नहीं अपवित्र, तुम निश्चिन्त रहना 
।।

दूर हूँ तुमसे न अब बातें उठें,
मैं स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया। 
वह नगर, वे राजपथ, वे चौक-गलियाँ,
हाथ अंतिम बार सबको जोड़ आया। 
थे हमारे प्यार से जो-जो सुपरिचित,
छोड़ आया वे पुराने मित्र, तुम निश्चिंत रहना 
।।

लो विसर्जन आज वासंती छुअन का,
साथ बीने सीप-शंखों का विसर्जन। 
गुँथ न पाए कनुप्रिया के कुंतलों में,
उन अभागे मोर पंखों का विसर्जन। 
उस कथा का जो न हो पाई प्रकाशित,
मर चुका है एक-एक चरित्र, तुम निश्चिंत रहना 
।।

गुरुवार, 21 मार्च 2024

म्हारो प्रणाम, बांके बिहारी जी.../ सन्त मीरा बाई / राग : यमन / स्वर : शोभा गुर्टू

 https://youtu.be/D_urLVPlBu8   

शोभा गुर्टू (1925-2004) हल्की हिंदुस्तानी शास्त्रीय शैली की एक भारतीय गायिका थीं। 

भानुमती शिरोडकर (शोभा गुर्टू ) का जन्म 1925 में बेलगाम , (वर्तमान कर्नाटक ) में हुआ 
था। उनकी माँ, मेनकाबाई शिरोडकर, एक पेशेवर नर्तकी थीं तथा जयपुर-अतरौली घराने के 
उस्ताद अल्लादिया खान की 'गायकी' शिष्या थीं। शोभा ने भी छोटी उम्र से ही संगीत का 
प्रशिक्षण उन्हीं से प्राप्त किया। 

शोभा ने एक अच्छे परिवार के कश्मीरी ब्राह्मण सज्जन विश्वनाथ गुर्टू से शादी की और उन्हें 
शोभा गुर्टू के नाम से जाना जाने लगा। 

1987 में, उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला , और बाद में लता मंगेशकर पुरस्कार , 
शाहू महाराज पुरस्कार और महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया । वर्ष 2002 में 
उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

पांच दशकों तक हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत शैली पर राज करने के बाद, ठुमरी की रानी के 
रूप में, शोभा गुर्टू की 27 सितंबर 2004 को मृत्यु हो गई। 

म्हारो प्रणाम, बांके बिहारी जी।
म्हारो प्रणाम, बांके बिहारी जी,
म्हारो प्रणाम।।

मोर मुकुट मात्थ्या तिलक बिराज्या,
कुंडल अलका कारी जी,
म्हारो प्रणाम, बांके बिहारी जी,
म्हारो प्रणाम।।

अधर मधुर धर बंसी बजावै,
रीझि रिझावा बृज नारी जी,
म्हारो प्रणाम, बांके बिहारी जी,
म्हारो प्रणाम।।

या छब देख्या मोह्या मीरा,
मोहन गिरिवर धारी जी,
म्हारो प्रणाम, बांके बिहारी जी,
म्हारो प्रणाम।।

प्रणाम, प्रणाम।

बुधवार, 20 मार्च 2024

गणपति तालं.../ गणेश की पारम्परिक स्तुति / स्वर : शारदा राघव

 https://youtu.be/Ieu4JOlubXs  

 
विकटोत्कटसुंदरदंतिमुखं
भुजगेंद्रसुसर्पगदाभरणम् |
गजनीलगजेंद्र गणाधिपतिं
प्रणतोऽस्मि विनायक हस्तिमुखम् || १ ||

सुर सुर गणपति सुंदरकेशं
ऋषि ऋषि गणपति यज्ञसमानम् |
भव भव गणपति पद्मशरीरं
जय जय गणपति दिव्यनमस्ते || २ ||

गजमुखवक्त्रं गिरिजापुत्रं
गणगुणमित्रं गणपतिमीशप्रियम् || ३ ||

करधृतपरशुं कंकणपाणिं
कबलितपद्मरुचिम् |
सुरपतिवंद्यं सुंदरनृत्तं [** सुंदरवक्त्रं **]
सुरचितमणिमकुटम् || ४ ||

प्रणमतदेहं प्रकटितताळं
षड्गिरि ताळमिदम् |
तत्तत् षड्गिरि ताळमिदं
तत्तत् षड्गिरि ताळमिदम् || ५ ||

लंबोदरवर-कुंजासुरकृत-कुंकुमवर्णधरम् |
श्वेतसशृंगं-मोदकहस्तं-प्रीतिसपनसफलम् || ६ ||

नयनत्रयवर-नागविभूषित-नानागणपति तं तत्तक्
नयनत्रयवर-नागविभूषित-नानागणपति तं तत्तक्
नानागणपति तं तत्तक्
नानागणपति तम् || ७ ||

धवलितजलधरधवलितचंद्रं
फणिमणिकिरणविभूषितखड्गम् |
तनुतनुविषहरशूलकपालं
हरहरशिवशिवगणपतिमभयम् || ८ ||

कटतटविगलितमदजलजलधित-
गणपतिवाद्यमिदं
कटतटविगलितमदजलजलधित-
गणपतिवाद्यमिदं
तत्तक् गणपतिवाद्यमिदं
तत्तक् गणपतिवाद्यमिदम् || ९ ||

तक्क धिं नं तरिकु तरिजनकु कुकुतद्दि
कुकुतकिट डिंडिंगु डिगुण कुकुतद्दि
तत्त झं झं तरित
त झं झं तरित
तकत झं झं तरित
त झं झं तरित
तरि तनत तनझणुत झणुधिमित
किटतक तरिकिटतों
तकिट किटतक तरिकिटतों
तकिट किटतक तरिकिटतों ताम् || १० ||

तकतकिट-तकतकिट-तकतकिट-तत्तों
शशिकलित-शशिकलित-मौळिनं शूलिनम् |
तकतकिट-तकतकिट-तकतकिट-तत्तों
विमलशुभकमलजलपादुकं पाणिनम् |
धित्तकिट-धित्तकिट-धित्तकिट-तत्तों
प्रमथगणगुणखचितशोभनं शोभितम् |
धित्तकिट-धित्तकिट-धित्तकिट-तत्तों
मृथुलभुज-सरसिजविशानकं पोषणम् | [** सरसिजभिपानकं **]
तकतकिट-तकतकिट-तकतकिट-तत्तों
पनसफल-कदलिफल-मोदनं मोदकम् |
धित्तकिट-धित्तकिट-धित्तकिट-तत्तों
प्रमथगुरुशिवतनय गणपति ताळनम् |
गणपति ताळनं
गणपति ताळनम् || ११ ||

मंगलवार, 19 मार्च 2024

कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी.../ महाकवि विद्यापति / बटगवनी-श्रृंगार गीत / मैथिल लोक गीत

https://youtu.be/a_R4GaTGR7M  

कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी।

एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी॥

छाड़ कान्ह मोर आँचर रे फाटत नव सारी।

अपजस होएत जगत भारी हे जनि करिअ उघारी॥

संगक सखि अगुआइलरे हम एकसरि नारी।

दामिनि आए तुलाएलि हे एक राति अँधारी॥

भनहि विद्यापति गाओल रे सुनु गुनमति नारी।

हरिक संग किछु डर नहि हे तोंहे परम गमारी॥

कवि नागार्जुन का अनुवाद :

कुंज भवन से निकली ही थी कि गिरधारी ने रोक लिया। माधव, बटमारी मत करो,
हम एक ही नगर के रहने वाले हैं। कान्‍हा, आंचल छोड़ दो। मेरी साड़ी अभी नयी-नयी
है, फट जाएगी। छोड़ दो। दुनिया में बदनामी फैलेगी। मुझे नंगी मत करो। साथ की
सहेलियां आगे बढ़ गयी हैं। मैं अकेली हूं। एक तो रात ही अंधेरी है, उस पर बिजली भी
कौंधने लगी - हाय, अब मैं क्‍या करूं? विद्यापति ने कहा, तुम तो बड़ी गुणवती हो। हरि
से भला क्‍या डरना। तुम गंवार हो। गंवार न होती तो हरि से भला क्‍यों डरती।

सोमवार, 18 मार्च 2024

विश्वेश्वर दर्शन कर, चल मन तुम काशी.../ महाराजा स्वाति तिरुनाल कृति / स्वर : राहुल वेल्लाल

 https://youtu.be/mHy8k3LJPFg  

 

विश्वेश्वर दर्शन कर, चल मन तुम काशी।।
विश्वेश्वर दर्शन जब कीन्हो बहु प्रेम सहित,
काटे करुणा-निधान जनम-मरण फांसी।। 
बहती जिनकी पुरी मो, गंगा पय कॆ समान
वा कॆ तट घाट-घाट भर रहे संन्यासी।।
भस्म अंग, भुज त्रिशूल, उर में लसे नाग-माल 
गिरिजा अर्धांग धरे त्रिभुवन जिन दासी।।
पद्मनाभ, कमलनयन, त्रिनयन, शंभू, महेश
भज ले ये दो स्वरूप रहले अविनाशी।।
अर्थ 
हे मन ! भगवान विश्वेश्वर के दर्शन के लिए काशी की तीर्थयात्रा अवश्य करें।
यदि आप उनसे प्रेमपूर्वक प्रार्थना करते हैं, तो वह, दयालु व्यक्ति, निश्चित रूप 
से आपके लिए जन्म और मृत्यु के चक्र को काट देंगे।
गंगा नदी शुद्ध दूध की तरह शहर से होकर बहती है। 
नदी के तट पर ऋषियों का एक समूह निवास करता है।
भगवान अपने स्वरूप पर पवित्र राख का लेप करते हैं, 
अपने हाथों में त्रिशूल रखते हैं। उनके गले में एक सर्प सुशोभित है। 
वह अपना रूप पर्वतों की पुत्री गिरिजा के साथ साझा करते हैं। 
तीनों लोकों के सभी लोग उनके चरणों में हैं।
हे मन ! कमल-नेत्र भगवान पद्मनाभ और तीन नेत्र महेश्वर की पूजा करें 
और अमर रहें।

शनिवार, 16 मार्च 2024

मेरो खोई गयो बाजूबन्द रसिया होरी में.../ होरी रसिया / कीर्तनकार : रसेश शाह

 https://youtu.be/A5hvnneGcVY  

मेरो खोय गयो बाजूबंद,
रसिया होरी में,
होरी में, होरी में,
होरी में, होरी में,
मेरो खोय गयो बाजूबंद,
रसिया होली में ।

बाजूबंद मेरे बड़ो रे मोल को,
तो पे बनवाऊँ पुरे तोल को,
सुनो नन्द के फ़रजंद,
रसिया होरी में,
मेरो खोय गयो बाजूबंद,
रसिया होली में।

सास लड़ेगी मेरी ननद लड़ेगी,
खसम की सिर पे मार पड़ेगी,
हे जाय सब रस भंग,
रसिया होरी में,
मेरो खोय गयो बाजूबंद,
रसिया होली में ।

उधम लाला तेने बहुत मचायो,
लाज शरम जाने कहाँ धरी आयो,
मैं तो होय गई तोसे तंग,
रसिया होरी में,
मेरो खोय गयो बाजूबंद,
रसिया होली में।